Saturday, January 16, 2010

Soorat Nikhar Jaati hai

जिधर भी देखता हूँ तन्हाई नज़र आती है,
आपके इंतजार में हर शाम गुज़र जाती है,

मैं कैसे करूँ गिला दिल के ज़ख्मों से हुज़ूर,
आंसू छलकते है मेरी सूरत निखर जाती है,

रो के हलके हो लेते है ज़रा सी तेरी याद में,
ज़रा सी नामुरादों की तबीयत सुधर जाती है,

असर करती यकीनन गर छु जाती उनके दिल को लेकिन,
अफ़सोस के आह मेरी फिजाओं ही में बिखर जाती है,

मै कदे में जब भी ज़िक्र आता है तेरे नाम का,
शाम की पी हुई सर-ए-शाम ही उतर जाती है,

कभी आ के मेरे ज़ख्मों से मुकाबिला तो कर,
ए ख़ुशी तू मुंह छुपा कर किधर जाती है,

तुझे इन्ही काँटों पे चल के जाना होगा,
उनके घर को बस यही एक राहगुजर जाती है...!!!

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